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छोटी बहन सारिका को घोड़ी बनाकर चोदा पार्ट 2

छोटी बहन सारिका को घोड़ी बनाकर चोदा पार्ट 2

मेरी बहन गज़ब की सेक्सी थी। उसका जिस्म ठीक जगह से भरा हुआ था, उसे सुन्दर और सेक्सी दिखने में कोई ज्यादा कष्ट करने की जरूरत नहीं थी।

कहानी का पहला भाग: छोटी बहन सारिका को घोड़ी बनाकर चोदा -1

जब तक सारिका ऊपर देखती, मैं चुपके से घर के अन्दर खिसक गया और धीमे से लॉक बंद कर दिया।


दो मिनट बाद लॉक पर बाहर से चाबी लगाने की आवाज़ आई, सारिका ने दरवाज़ा खोला, वह बहुत बदहवास और काफी डरी हुई लग रही थी।

सारिका अपने कमरे में गयी, अपना बैकपैक रखा, अपने बैग से अपना सिप्पर निकाला पानी पीया और वाशबेसिन के सामने जाकर मुंह धोने लगी।


आज मैंने पहली बार देखा, सारिका गज़ब की सेक्सी थी। उसका जिस्म ठीक जगह से भरा हुआ था, उसे सुन्दर और सेक्सी दिखने में कोई ज्यादा कष्ट करने की जरूरत नहीं थी।

उसके सिल्की बाल स्टेप कट थे जो उसके कन्धों पर बिखरे हुए थे। मैंने कभी पहले गौर नहीं किया था वह कैसे कपड़े डालती है। आज देखा तो तो उसने स्लिम फिट जीन्स और ऊपर से लगभग सफ़ेद स्लीवलेस टॉप पहनी थी जिसके पीछे से उसकी ब्रा का स्ट्रेप नज़र आ रहा था।


जब वह कुल्ले के लिए वॉशबेसिन पर झुकी तो उसकी पैन्टी की आउटलाइन उसकी जीन्स पर उभर आई। मुझे पीछे खड़ा देख, सारिका मुझे अवॉयड करने के लिए बाथरूम में घुस गयी।


मेरा लोड़ा इतनी बुरी तरह तना हुआ था, वह अपने आप गीला हो गया था और मेरा टोपा पीछे की और खिसक गया था। मैं ठरक से जला जा रहा था और मेरा लंड अपने आप झटके मार रहा था। यह तो शुक्र है मैंने अपने लोअर के नीचे बॉक्सर डाले थे वर्ना छुपाना नामुमकिन हो जाता।

यह सच है कि अगर मुझे इस बात का ध्यान न होता कि वह मेरी बहन है वह आज हर हाल में उसे चोद डालता।


उस समय मुझे सारिका पर कोई गुस्सा नहीं आ रहा था। बल्कि मुझे उसे डरा देख कर बुरा लग रहा था।


मैं ठरक में अपनी जो हालत हो गयी थी वह तो देख ही रहा था, मैंने सोचा सारिका भी तो जवान है, उसकी भी जिस्मानी ज़रूरतें होंगी, जैसे सेक्स के नशे में हम लड़के बहकते हैं, वह भी बहक सकती है। ऐसे वक़्त पर मुझे उसका साथ देना चाहिए, ना कि उसे डांटना-डपटना चाहिए, या फिर पापा-मम्मी को उसकी शिकायत करनी चाहिए।


सारिका जब दस मिनट तक बाथरूम से बाहर नहीं आयी तो मैंने दरवाजा खड़काया और पूछा- सारिका कब आ रही हो, मुझे भी जाना है।

उसी हल्की सी आवाज़ आई- बस आ रही हूँ मन्नू भैया।


जब वह बाहर आई तो उसका चेहरा रुआंसा था, और वह मुझसे आँख नहीं मिला रही थी।


मैं दिखावे के लिए बाथरूम गया, मूत करने की कोशिश की मगर लंड खड़ा होने के कारण मूत नहीं निकला पाया, मैंने दिखावे के लिए फ्लश चला दिया और वापस आकर उसे बोला- चलो सारिका खाना खा लेते हैं।

सारिका ने कहा- आप खा लें भैया, मुझे अभी भूख नहीं।


मुझे लगा यह मामला तब तक तय नहीं होगा जब तक मैं सारिका से इस बारे में बात नहीं करूँगा। वर्ना यह लड़की तो तनाव से ही मर जायेगी।

मैं उसके पास गया और बहुत आराम से उससे पूछा- सारिका, वह लड़का कौन था?

“कॉलेज का एक दोस्त है!” सारिका ने डरते हुए धीरे से बोला।

मैंने बहुत आराम से उसे बोला- ठीक है … पर सारिका अपना ध्यान रखना, ज़रूरी नहीं सब लड़के अच्छे ही हों, कुछ गलत भी होते हैं।


मैंने बात को जारी रखते हुए कहा- डरो मत, मैं मम्मी-पापा को कुछ नहीं बताऊँगा, लेकिन अगर कभी किसी तरह की भी गड़बड़ हो जाए तो तुम मुझसे वादा करो मुझे ज़रूर बताओगी।

उसकी आँखें भर आई और बस उसके मुंह से सिर्फ एक ‘जी भैया’ निकला।

मैंने कहा- देखो सारिका, तुम्हारी ज़िम्मेदारी मेरी है। मगर तुम मेरी बहन पहले हो, इस लिए अगर तुमसे कुछ गलती भी होगी तब भी मैं तुम्हारा साथ दूंगा।


इतना सुनना था कि वह सुबक सुबक कर रोने लगी।

मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा- अब चलो मुंह धोओ, खाना खाते हैं।

उसके मन से तो मानो जैसे एक पहाड़ उतर गया हो, वह वॉशबेसिन पर मुंह धोकर किचन में गयी और खाना माइक्रोवेव में गर्म करने लगी।


बाद में हमने टीवी देखते हुए खाना खाया, सारिका मुंह नीचे कर ही खाती रही, ख़त्म होने पर बर्तन रखे और बोली- भैया, मैं सोने जा रही हूँ।


हालाँकि यह अभी सोने का वक़्त नहीं था, मगर मुझे पता था उसे नींद क्यूं चाहिए थी। उस लड़के ने आज इसकी जवानी को पूरा निचोड़ डाला था। उसकी चूत ही नहीं उसके शरीर का अंग-अंग दर्द कर रहा होगा।


मैं अपने कमरे में गया, और बिस्तर पर लेटे हुए मैं सोचने लगा कि मुझे तो पता ही नहीं लगा कब मेरी छोटी सी बहन सारिका एक जवान लड़की बन गयी है और आज दूसरे मर्दों से चुदने भी लग गयी है।

उस लड़के और सारिका का सेक्स याद करके मेरा रोम-रोम वासना से भर रहा था।


मैंने उठ कर दरवाज़े पर अन्दर से कुण्डी लगाई, अपना लोअर और बॉक्सर नीचे किया, हाथ में थूक लगायी और सारिका को सोच कर धीरे धीरे चमड़ी ऊपर नीचे खिसकाने लगा।

हैरानी की बात थी कि मेरे मन में आज ज़रा सी भी इस बात की शर्म या ग्लानि नहीं थी कि मैं उस दिन अपनी छोटी बहन को आज सिर्फ और सिर्फ एक चूत की तरह देख रहा था।


उस दिन पहली बार मैं ज्यादा देर नहीं टिक पाया, एक तो कई दिन से टट्टे वीर्य से भारी थी, और ऊपर से जो आज मैंने देखा उसका प्रभाव। अचानक मेरे लोड़े ने चार-छह छोटी-बड़ी पिचकारियाँ हवा में निकलीं, उनमें आज इतना जोर था कि एक दो तो मेरे मुंह पर आ कर गिरी।

मैंने उठ कर अपने पुराने तौलिये से अपने को साफ़ किया और लाइट बंद कर के सो गया।


वह रात और अगला दिन दोनों बेचैनी से गुज़रे। सारा दिन सारिका को याद कर के मैं उत्तेजित होता रहा। मुझे अब हर हाल में सेक्स चाहिए था, मुझे अपना लोड़ा या तो किसी के मुंह में ठूँसना था या फिर चूत या गांड में घुसाना था, जो भी हो हर हाल में मुझे अपना कामरस निकालना था।


जो भी जवान मर्द हैं वे समझते होंगे कि कई बार आदमी ऐसे स्थिति में पहुँच जाता है जहाँ ठरक से वह पागल हो चुका होता। ऐसे में रिश्तों की कोई अहमियत नहीं रहती। हर औरत और लड़की बस उसकी हवस ठंडी करने का एक जरिया होता है। मुझे भी आज सारिका की जरूरत थी, मैं इसी उधेड़बुन में था कि कैसे मैं अपना लोड़ा अपनी बहन की चूत में घुसाऊँ।


यह तो था नहीं कि वह कोई कुंवारी थी, जिस हिसाब से वह उस लड़के को किस कर रही थी, उससे फिन्गरिंग करवा रही थी, उसका लोड़ा चूस रही थी तो यह पक्का था कि यह चुद भी चुकी है। उस दिन भी शायद वह उस लड़के से चुद जाती अगर कहीं मन के अन्दर अनजाने में पकड़े जाने का डर ना होता। तभी दोनों ने सीढ़ियों में ही अपना काम कर लिया था।


मुझे किसी तरह घर पहुंचना था। एक बार फिर खराब तबीयत का बहाना बना कर आधे दिन बाद घर आ गया।


सारिका अभी नहीं आई थी। मैं उसके कमरे में गया, उसकी अलमारी खोली और उसके कपड़े देखने लगा। उसके हर कपड़े को पकड़ कर मुझे ठरक चढ़ रही थी।

मैंने अलमारी में पीछे हाथ मारा तो एक साइड पर उसकी कच्छियां (पंजाबी में पैन्टी को यही कहते हैं) और ब्रा पड़ी थीं।


मैंने बाहर निकाली और देखा दोनों अच्छी क्वालिटी की थी, पतले स्ट्रेप, बॉडी की शेप के टाइट कप, कहीं जाली और कहीं सुन्दर कढ़ाई, मतलब देखते ही सेक्स आ जाये। कुछ ब्रा स्किन कलर थीं, एक दो काली और लाल भी थी, एक पूरा सेट लेमन कलर का था, ब्रा का साइज़ बत्तीस था जो उसके शरीर की बनावट और उसके वज़न के लिये एकदम उचित था।


पैन्टी अट्ठाईस साइज़ की थी और बहुत से रंगों में थीं। कई पतली थोंग जैसी, कोई बिकिनी जैसी, कई सूती और कई सेक्सी साटिन की। मन में सारिका को यह पैन्टी और ब्रा डाले हुए सोचा तो लंड ने एक ठुमका मारा।


उसकी ब्रा पैन्टी को छूकर मैं ऐसे मुकाम पर पहुँच गया जहाँ बगैर सेक्स किये अब मैं वापस नहीं जा सकता तथा। पहले सोचा किसी रंडी को बुला लूं। जब मैं और आफताब यहाँ रहते थे तो एक दो बार हमने रंडी बुलाई थी, मगर तब हम दो थे और थ्रीसम किया था, पैसे भी आधे आधे कर लिए थे।


लेकिन अब मैं अकेला था सोचा पता नहीं कितना सुरक्षित होगा, कहीं कोई गलत लड़की से चक्कर में फंस ना जाऊं, दूसरी बात यह कि एक ट्रिप में तीन से पांच हज़ार तक लग जायेंगे, और ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा चलेगा। इतनी ज्यादा ठरक में तो हो सकता है और भी जल्दी झड़ जाऊं। मुझे यह फिजूलखर्ची लग रही थी, विशेषतः जब मुझे रंडी चोदने में कोई ख़ास मज़ा नहीं आता था।

आखिर हार कर वही पुरानी मुठ मारने की सोची। सोचा सारिका अपने अंडरगारमेंट धोने के लिए कहाँ रखती होगी, मुझे उसकी चूत की खुशबू सूंघनी थी।


वाशिंग मशीन के पास लांड्री बास्केट पड़ी थी, हमारी मेड दो-तीन दिन बाद जब कुछ कपड़े हो जाते थे, मशीन में धो देती थी। बास्केट में पड़े कपड़े बाहर निकाले तो सबसे नीचे कच्छियाँ और ब्रा मिलीं।


मैंने पैन्टी उठायी और अपने कमरे में ले आया। आज मुझे पूरा नंगा होकर मुठ मारने का मन था। मैंने कपड़े उतारे और सारिका की पैन्टी को चूत वाली जगह से सूंघने लगा, पैन्टी ताज़ी ताजी उतरी हो तो उसमें चूत की खुशबू होती है, बाद में सूख जाए तो ख़त्म हो जाती है।


मैंने अपनी जीभ निकाल कर चूत से लगने वाले भाग को चाटना शुरू किया। साथ साथ अपने हाथ में थूक लगा कर लंड पर चलाना भी शुरू कर दिया। पूरे कमरे में मेरे सेक्स की खुशबू भर गयी, तभी मैंने उसकी पैन्टी ही लंड पे लपेट ली और उसके साथ ही मुठ मारने लगा।


मैं सेक्स करते हुए गालियाँ देता हूँ, विशेषतः जब वीर्य छूटने को होता है, मगर पता नहीं क्यूं अभी भी सारिका को जिस टाइप की गाली देने का मैं आदी था, कहने में झिझक हो रही थी,

बस सेक्सी, बिच जैसे अंग्रेजी शब्द ही मुंह से निकल रहे थे।


कुछ देर में ही यह सब मेरे लोड़े की बर्दाश्त के बाहर हो गया और मैं बोला ‘ये ले मेरी बिच, अपने भाई का सीमन ले!’ और मेरा लोड़ा ज़ोरदार धार मारने लगा, मेरे हल्के पीले सॉलिड माल से सारिका की सारी पैन्टी भीग गयी।


थोड़ी देर में मैं उठा, सारिका की ही दूसरी पैन्टी से अपने लंड को पौंछ कर साफ़ किया और फिर आँखें बंद करके कुछ देर के लिए लेट गया।


जब उठा तो बाथरूम गया, पैन्टी को वॉशबेसिन पर थोड़ा धोया ताकि मेरा माल छूट के निकल जाए, और फिर लांड्री बास्केट में फ़ेंक दी।

पता नहीं क्यूं अब मुझे डर नहीं रहा था कि सारिका या मेड को शक हो जाएगा।


रात को सोते हुए मैं सोच रहा था कि अब यह किस्सा जहाँ पहुँच गया है, सारिका को चोदे बगैर मुझे चैन नहीं आएगा। अब यही सोचना है कि किस तरह से इसे अंजाम दिया जाए कि कुछ ज़बरदस्ती भी ना हो और काम भी बन जाये।


मन में शर्म और ग्लानि थी ही नहीं। बायोलॉजिकली ना तो सारिका मेरी बहन थी ना मेरे बाप की बेटी। रिश्ते में ज़रूर मेरी बहन थी, मगर मैं कोई इस से ज़बरदस्ती करने वाला तो नहीं था, अगर कुछ होना है उसकी मर्ज़ी से ही होना था, फिर इसमें बुरा क्या!


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