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भाभी का वो पीली साड़ी वाला राज़


जून की चिलचिलाती दोपहर थी। पंखे बंद, AC बंद — और बिजली भी नदारद। पसीना पूरे शरीर से ऐसे बह रहा था जैसे किसी ने बर्फ़ पर रखा बदन आग में रख दिया हो।
मैं, राहुल, 25 साल का जवान लड़का, अपने भाई के घर पिछले कुछ महीनों से रह रहा था। नौकरी ढूँढ रहा था, लेकिन घर में एक और चीज़ थी जो मन को ज्यादा उलझा रही थी — मेरी भाभी… नीता भाभी।
भाई ऑफिस में थे और घर में सिर्फ़ मैं और भाभी। गर्मी में नहा कर मैं बस तौलिया लपेटकर अपने कमरे में लेटा हुआ था, जब मेरी नज़र दरवाज़े पर पड़ी — और मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा।



 पहली झलक, गीली साड़ी में वो

भाभी रसोई से निकली थीं। पीली साड़ी में उनका बदन ऐसा लग रहा था जैसे भीगी हुई रेशमी चादर किसी आग के गोले पर डाली गई हो। साड़ी उनके पसीने से भीग चुकी थी और शरीर की हर curve साफ़ दिख रही थी।
उन्होंने शायद ब्लाउज़ नहीं पहना था — या पहना था, लेकिन इतना पतला कि उनकी पीठ से लेकर कमर तक सब कुछ दिख रहा था।
उनका पल्लू ढीला पड़ा था, और कभी-कभी हवा से थोड़ा हटता, तो सीने का ऊपरी हिस्सा साफ़ झलकता। मैंने नज़रें नहीं हटाईं। और उन्होंने देख लिया।
“देख क्या रहा है ऐसे?” वो मुस्कराईं।
“कुछ नहीं भाभी… बस… साड़ी अच्छी लग रही है।”


वो हँसीं। “सिर्फ़ साड़ी? या कुछ और भी?


 गिलास से फिसला मन 

उन्होंने मेरे लिए आम का शरबत लाया। मैं उठकर लेने गया — लेकिन शायद गर्मी, पसीना और थोड़ी घबराहट में गिलास हाथ से फिसल गया। शरबत उनके साड़ी पर गिर गया… ठीक वहीं… जहां साड़ी सबसे ज्यादा चिपकी हुई थी।


“अब तो सच में देखना पड़ेगा — कितनी नज़र फिसल रही है तेरी,” उन्होंने कहा और गीली साड़ी को पल्लू से पोछने लगीं।


वो झुकीं, और तभी उनका पल्लू मेरी नंगी छाती को हल्का सा छू गया। वो स्पर्श हल्का था, लेकिन उसमें इतनी गर्मी थी कि शरीर सुन्न सा हो गया।


वो कुछ नहीं बोलीं, बस एक बार मेरी आँखों में देखीं… और फिर रसोई में लौट गईं। लेकिन मेरी धड़कन अब भी 120 की स्पीड पर चल रही थी।

 उस रात की पहली आहट 


रात के क़रीब 11 बज चुके थे। मैं छत पर लेटा था — ऊपर आसमान में हल्के बादल, और मेरे ज़हन में दिनभर की वही एक छवि — भाभी की पीली साड़ी में भीगी कमर, पसीने से चमकता बदन, और वो हल्की सी मुस्कान।


तभी सीढ़ियों से आहट हुई। धीमे-धीमे कदमों की आवाज़।


मैं उठा और पीछे देखा… और मेरी साँसें वहीं थम गईं।


भाभी थीं… लेकिन इस बार साड़ी में नहीं…

वो हल्के गुलाबी रंग की पतली साटन नाइटी में थीं, जो उनके बदन से ऐसे चिपकी थी जैसे भीगा हुआ गुलाब किसी हथेली पर रखा हो।


नाइटी का गला गहरा था — और उसके अंदर से उनका सीना आधा झलक रहा था, आधा छुपा हुआ, जैसे जानबूझकर छोड़ा गया कोई रहस्य।


उनके बाल खुले थे, थोड़े बिखरे, और आँखों में नींद से ज़्यादा कुछ और था — जैसे कोई अधूरी चाहत।


“नींद नहीं आ रही थी,” उन्होंने कहा। “तू ऊपर था, तो सोचा थोड़ी हवा में बैठ लूं।”


मैंने चुपचाप उन्हें पास बैठने को कहा।


वो मेरे करीब आकर बैठ गईं। उनकी नाइटी का कपड़ा मेरी बाहों से टकराया — ठंडा और मुलायम। लेकिन उस कपड़े के पीछे जो गर्मी थी… वो मेरे दिल तक पहुँच गई।



“राहुल…” उन्होंने कहा, “आज तू मेरी नज़रों से कुछ नहीं छुपा पा रहा।”


मैंने कुछ नहीं कहा। बस उनकी ओर देखा।


उन्होंने अपनी उँगलियाँ मेरी हथेली में फँसाईं, और बोलीं —

“तुझे लगता है मुझे एहसास नहीं होता, जब तू मुझे देखता है?

जब तेरी नज़र मेरी छाती से फिसलती है?

जब तेरी साँसें रुक जाती हैं, मेरी नाइटी की गिरती हुई स्ट्रैप देख कर?”


मैं शर्मिंदा सा हो गया, लेकिन भाभी की आँखों में गुस्सा नहीं थ

वो तो जैसे चाहती थीं कि मैं उन्हें इसी तरह देखूं।


उन्होंने मेरी उंगलियाँ उठाकर अपने सीने पर रख दीं — हल्के से… ठीक वहीं, जहाँ नाइटी की महीन लेस थी।


उनके ब्रेस्ट्स नरम थे, गर्म थे, और हल्के-हल्के धड़क रहे थे।


“ये सब तेरा है… अगर तू समझ सको तो…” उन्होंने फुसफुसाया।


मैंने धीरे से अपनी उँगलियों को उनकी त्वचा पर घुमाया — बहुत हल्के से, जैसे कोई इबादत कर रहा हो।


उनकी साँसें तेज़ होने लगीं… उन्होंने आँखें बंद कर लीं, और उनका बदन मेरी ओर झुक गया।


नाइटी के अंदर उनकी नर्मी, उनकी गर्मी, और उनका दिल — तीनों एक साथ धड़क रहे थे।

जैसे वो इस पल को पूरी तरह जीना चाहती थीं — बिना शर्त, बिना डर।




मैंने हाथ बढ़ाया और उनकी उंगलियाँ थामीं।

वो काँप गईं — लेकिन हाथ नहीं हटाया।


धीरे-धीरे मैंने उनका हाथ अपने सीने पर रखा।

फिर मेरा चेहरा उनकी तरफ़ झुकने लगा।


उनके होंठ… गर्म, नम और हल्के-हल्के काँपते हुए।

मैंने उन्हें चूमा — धीरे, फिर गहराई से।


ये कोई जवान जोश वाला चुंबन नहीं था, ये एक ऐसा चुंबन था जैसे दो सालों से दबी हुई तड़प अब बिना आवाज़ निकले बह रही थी।


मैंने धीरे से उनके कंधे की स्ट्रैप नीचे सरकाई।

अब उनका एक ब्रेस्ट पूरी तरह मेरे सामने था —

गोल, मुलायम, पसीने से चमकता हुआ, और निप्पल थोड़े सख्त।


मैंने आँखें बंद कर के उसे चूमा।

भाभी की साँसें तेज़ हो गईं।


"राहुल…" उन्होंने धीरे से कहा, “ऐसे कोई पहली बार में नहीं छूता… तू तो जैसे मुझे पढ़ रहा है…”


मैंने उनकी नाइटी को नीचे की तरफ सरकाया —

अब उनका पेट, जाँघें, सब मेरी उंगलियों के नीचे थे।

उनकी नाइटी उनके घुटनों तक लटक रही थी, और उनकी जाँघें मेरे पेट पर गर्मी छोड़ रहीं थीं


अब भाभी मेरी गोद में थीं।

उनका चेहरा मेरी गर्दन में छुपा हुआ था, और बदन मेरी जाँघों पर झुका हुआ।


मैंने धीरे से उनकी जाँघों को चूमा, फिर पेट को, फिर सीने को।

उनकी उंगलियाँ मेरे बालों में उलझ गईं।


“इतने प्यार से किसी ने मुझे कभी नहीं छुआ,” उन्होंने फुसफुसाकर कहा।

“सबने सिर्फ़ जिस्म देखा… तू मुझे महसूस कर रहा है।”


मैंने कहा, “आप सिर्फ़ मेरी भाभी नहीं हैं… आप मेरी सबसे गहरी ख्वाहिश भी हैं।”


भाभी मुस्कराईं, लेकिन आँखें नम थीं।

"तेरी यही बात मुझे तोड़ देती है… और जोड़ भी देती है।"


वो मेरे ऊपर झुकीं और मेरे होंठों को फिर चूमा —

इस बार एक लंबा, धीमा, और बेहद intimate किस।


उनका बदन अब मेरी रग-रग में उतर चुका था।


छत पर वो रात अब और गहरी हो गई थी। चाँद आसमान के बीचोबीच था, और उसकी रौशनी भाभी की नाइटी में लिपटे बदन को ऐसे नहला रही थी जैसे कोई देवता किसी मूर्ति को पूज रहा हो।


भाभी मेरी बाहों में थीं, उनकी गर्म साँसें मेरी गर्दन को छू रही थीं, और उनका बदन अब हर हरकत पर सिहर रहा था। हमने अभी तक खुद को रोक रखा था — लेकिन अब… कुछ भी रोकने का वक़्त नहीं बचा था।


मैंने धीरे से उनकी ठुड्डी उठाई और होंठों पर एक लंबा, प्यासा चुंबन दिया। इस बार कोई हिचक नहीं थी, कोई डर नहीं — सिर्फ़ दो जिस्म जो पूरी तरह एक-दूसरे को महसूस करना चाहते थे।


उनकी नाइटी अब पूरी तरह उनके बदन से सरक चुकी थी। उनके गोल ब्रेस्ट्स अब पूरी तरह मेरे सामने थे — नर्म, गरम, और बीच में गुलाबी निप्पल जो हल्के से सख़्त थे।


मैंने अपनी ज़ुबान से उनके एक निप्पल को हल्के से चाटा।


भाभी की उँगलियाँ मेरे बालों को कस के थाम चुकी थीं — जैसे वो खुद को मेरी पकड़ में सौंप चुकी थीं।


“राहुल… अब मुझे रोक मत,” उन्होंने धीमे से कहा।


मैंने उन्हें नीचे छत के गद्दे पर लिटाया — चाँदनी अब उनके पूरे बदन पर पड़ रही थी।

उनका पेट, उनकी जाँघें, और वो जगह… जो अब पूरी तरह नम हो चुकी थी।


मैंने धीरे से उनकी जाँघों को चूमा, और फिर उनके पैरों के बीच की गरमाई को महसूस किया —

उनकी योनि हल्की-हल्की थरथरा रही थी, और उनमें से अब मोहब्बत की भीनी-भीनी ख़ुशबू आ रही थी।


मैंने उनकी जाँघें फैलाईं और अपनी ज़ुबान को उनके बीच सरकाया —

जैसे कोई शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ा रहा हो, वैसे ही मैं हर मोड़ पर उनका स्वाद ले रहा था।


“ओह… राहुल… वहाँ मत… हाँ… वहीं… रुको मत…”


भाभी की साँसें अब तेज़ हो चुकी थीं। उनकी उँगलियाँ मेरे सिर को और पास खींच रही थीं। मैं अब उनकी गीली, गर्म योनि के अंदर अपनी ज़ुबान से खेल रहा था।


वो थरथराईं, और उनकी देह ने एक हल्की झटके में चरम सुख की पहली लहर पा ली।


वो हाँफते हुए बोलीं —

“अब… मुझे तू अंदर चाहिए…”


मैंने उनकी आँखों में देखा — उसमें अब सिर्फ़ मोहब्बत नहीं, आग भी थी।


मैंने अपना तौलिया उतारा — मेरा लिंग अब पूरी तरह खड़ा था, गर्म, और तड़पता हुआ।


भाभी ने उसे हाथ में लिया, धीरे से सहलाया, और फिर उसकी नोक को अपनी योनि पर लगाया।

मैंने धीरे से खुद को उनके अंदर धकेला — और वो एक ठंडी आह के साथ मेरी ओर पूरी तरह खुल गईं।


“ओह… राहुल… तू मेरे अंदर है… पूरी तरह…”


मैंने खुद को धीरे-धीरे हिलाना शुरू किया — पहले नर्म, फिर तेज़।

भाभी ने अपनी जाँघें मेरी कमर के चारों तरफ़ लपेट दीं और अपनी पीठ को छत के गद्दे पर रगड़ती चली गईं।


उनका बदन अब हर झटके पर कांप रहा था।


मैंने एक हाथ से उनके ब्रेस्ट को दबाया, दूसरा उनके बालों में डाला और अपने लिंग को अब और गहराई तक धकेलने लगा।


हर बार जब मैं उनके अंदर जाता, वो हल्की चीख के साथ और गीली होती जातीं।


“हाँ… राहुल… और… और… मत रुको… तू मुझे फिर से जिंदा कर रहा है…”


हम अब एक रफ़्तार में थे — जैसे दो नदियाँ एक होकर सागर की ओर बढ़ रही हों।


भाभी की आँखें अब आधी बंद थीं, उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ में गड़ चुकी थीं।

हमने करवट बदली — अब वो ऊपर थीं, और धीरे-धीरे अपने हिप्स को आगे-पीछे हिला रही थीं।


उनका बदन अब रौशनी में नाच रहा था — हर उभार, हर कम्पन मेरी आत्मा तक पहुँच रहा था।


भाभी ने नीचे झुक कर मेरे होंठ चूमें, फिर सीने पर अपनी छाती रगड़ने लगीं।


“ये मेरा मिलन है… तू अब मेरा है,” उन्होंने कहा और झटकों की स्पीड बढ़ा दी।


मैं अब खुद को रोक नहीं सका — और मैंने उनके साथ एक ज़ोरदार चरमसुख में खुद को उनके अंदर छोड़ दिया।


हम दोनों का बदन काँप रहा था — जैसे आत्माएँ एक हो गई हों।


भाभी मुझ पर झुकी रहीं, पसीने से लथपथ, लेकिन मुस्कुराती हुई।


“आज… तूने सिर्फ़ मुझे पाया नहीं, मुझे पूरा कर दिया…”


हम देर तक यूँ ही लेटे रहे — नग्न, चाँदनी में लिपटे, एक-दूसरे की बाँहों में समाए हुए।


उस रात सिर्फ़ जिस्म नहीं जुड़े थे — एक तड़प, एक छुपा हुआ इश्क़… आज उसकी अंतिम हद को छू आया था।

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