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भाभी और पड़ोसन की चुदाई

 गाव के सन्नाटे में कुछ रातें गर्म होती हैं। वो रातें जब दीवारें चुप होती हैं, लेकिन सांसें बोलती हैं।

ऐसी ही एक गर्म रात की कहानी है ये… भाभी, पड़ोसन और अमित की।


पहला दिन


अमित छुट्टियों में शहर से गांव लौटा था। 21 साल का जवान, लंबे समय बाद अपने घर लौटा था। घर पहुंचते ही सबसे पहले उसकी नज़र अपनी भाभी कविता पर गई।


कविता भाभी… एकदम गोरी, गोल मटोल बदन, घुटनों तक चुन्नी, हल्की भीगी बदन से चिपकी साड़ी… और ऊपर से वो मुस्कराहट।

अमित की नज़रें भटकतीं तो बस एक ही जगह ठहरतीं — भाभी के भारी ब्रेस्ट पर, जो हर बार चलने में थरथराते।


कविता भाभी के पति यानी अमित के भाई शहर में नौकरी करते थे। महीनों तक घर नहीं आते थे।


एक रात, अमित गर्मी के कारण छत पर लेटा था। तभी उसे पड़ोस के कमरे से कुछ आवाज़ें आईं। भाभी की सांसों की, धीमी कराह की…


 चुपके से देखा – वो पहली रात


अमित दबे पांव उठा और दीवार की ओट से झांका। सामने का नज़ारा उसके होश उड़ा देने वाला था।


भाभी अपने कमरे में थीं, और उनके साथ थी सुनीता, उनकी पड़ोसन और बेहद हॉट औरत। उम्र लगभग 30, खुले विचारों वाली, गांव में अकेली रहती थी।


अमित की आंखें फटी रह गईं जब उसने देखा — सुनीता भाभी के ब्रेस्ट पर हाथ फेर रही थी।

भाभी ने अपनी ब्लाउज़ हटा दी थी, और उनकी बड़ी, सफेद, भारी छातियां बाहर थीं।

सुनीता धीरे-धीरे उन पर अपना मुंह ले जा रही थी…


“आह्ह… सुनीता… धीरे…” — भाभी की सिसकती आवाज़



अमित का लिंग एकदम खड़ा हो गया। वो वहीँ खड़ा होकर सब देखता रहा।


 लेस्बियन सीन 


भाभी पलंग पर थीं, सुनीता उनके पैरों के बीच।


भाभी का पल्लू कमर से नीचे था और साड़ी खिसक चुकी थी। उनकी जांघें कांप रही थीं, और सुनीता अपनी जीभ से उनके नाज़ुक हिस्से को चाट रही थी।


भाभी की उंगलियाँ पलंग की चादर में धँसी थीं। उनकी कमर हिल रही थी…

“हाआँ… और करो सुनीता… बहुत अच्छा लग रहा…”


सुनीता कभी ब्रेस्ट चूसती, कभी नीचे की जगह को चाटती… भाभी की पूरी देह हिल रही थी।


अमित की सांसें तेज़ हो गईं। उसने अपनी लुंगी के नीचे से लिंग पकड़ लिया और धीरे-धीरे मसलने लगा।

वो पहली बार था जब उसने ऐसा कुछ देखा था… और वो पूरी रात उसे नींद नहीं आई।



योजना की शुरुआत


अगले दिन अमित ने भाभी को और गौर से देखना शुरू किया। उनकी चाल, उनका मुस्कुराना, उनका भीगता पल्लू… अब सब कुछ उसे उत्तेजित करता था।


उसने धीरे-धीरे भाभी को छेड़ना शुरू किया।


कभी पानी का जग देते हुए हाथ को टच करना, कभी पीछे से आकर ‘भाभी कुछ मदद चाहिए?’ बोलना, और कभी-कभी उनके ब्रेस्ट के पास तक हाथ लाकर पीछे खींच लेना।


शुरुआत में भाभी चौंकती रहीं, लेकिन कुछ ही दिनों में उनकी आंखों में भी कोमल कमजोरी झलकने लगी।



 दूसरा दिन


शाम को भाभी अकेली थीं। सुनीता नहीं आई थी उस दिन।


अमित ने धीरे से कहा, “भाभी, मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ, लेकिन उस दिन… मैंने कुछ देख लिया…”


भाभी की आंखें फटी… “क्या देखा अमित?”


“आप और सुनीता… वो सब।”

भाभी का चेहरा शर्म से लाल हो गया।


“मैं… मैं तुझसे कुछ कह नहीं सकती, लेकिन तड़पती हूं बहुत…” — उन्होंने धीरे से कहा।


अमित ने बिना कुछ कहे उनके हाथ को पकड़ लिया। भाभी ने विरोध नहीं किया।

फिर उसने धीरे से उनके ब्रेस्ट को सहलाया…

“कविता भाभी, क्या मैं आपकी तृष्णा मिटा सकता हूं?”


भाभी की आंखें बंद थीं। उन्होंने धीरे से सिर हिलाया।



अमित ने भाभी की ब्लाउज़ खोल दी, और उनकी छातियों को हाथ में भरकर चूमने लगा।

वो चूसते हुए नीचे गया और उनकी जांघों को सहलाता रहा।


भाभी की साड़ी अब कमर से नीचे गिर चुकी थी।

अमित ने उनकी जांघों को फैलाया और पहली बार अपनी जीभ से उनकी योनि को चाटा।


भाभी की चीख निकल गई — “हाआँ अमित… अह्ह्ह… जीभ अंदर डालो…”


अमित ने धीरे-धीरे जीभ अंदर डाली और भाभी की योनि को पूरी तरह गीला कर दिया।

भाभी का शरीर कांप रहा था। वो पूरा भीग चुकी थीं।



 तीसरा दिन


अगले दिन रात को सुनीता आई।

भाभी ने अमित को भी बुला लिया।


“अब तीनों मिलकर अपनी तृष्णा मिटाते हैं…” — भाभी ने कहा।


पलंग पर भाभी बीच में थीं।

एक तरफ सुनीता ने उनकी छातियों को चूसना शुरू किया, और दूसरी तरफ अमित ने उनका लिंग में लिंग घिसकर उन्हें तड़पाना शुरू किया।


फिर…


भाभी ने अमित का लिंग मुंह में ले लिया — “इतना बड़ा है…”

सुनीता नीचे गई और भाभी की योनि को चाटने लगी।


तीनों की सांसें तेज़, आवाज़ें गूंज रहीं थीं — “चाटो… चूसो… घुसाओ…”


फिर अमित ने भाभी को पलटा और पीछे से लिंग अंदर किया।


धप्प… धप्प… धप्प — पूरी देसी आवाज़ों के साथ पूरा लिंग अंदर–बाहर हो रहा था।


भाभी और सुनीता अब एक-दूसरे को भी चाट रही थीं।


अमित बारी-बारी से दोनों को कर रहा था।

वो रात, वो पलंग, वो देसी देह — सब पसीने से भीग गए थे।


तीनों ने पूरी रात एक-दूसरे को तृप्त किया।



सुबह हुई।


भाभी कविता, सुनीता और अमित — ती

नों नंगे लेटे थे।


सबके चेहरे पर संतोष, राहत और एक देसी मुस्कान थी।


अब गांव के उस घर में तृष्णा नहीं, तृप्ति बसती थी।



अमित की आँखें सुबह उठीं और उसका दिल बीते अनुभव की गर्मी में धड़क रहा था। उसकी नजर बाहर खिड़की में सुनीता और भाभी कविता की आहट की तरफ़ चली गई। दोनों मिल रही थीं, बातें हो रही थीं, और आम का पेड़ चुपचाप सब देख रहा था।


जब सुनीता अमित से आँख मिलाकर मुस्कुरा दी, अमित में साहस आया। भाभी कमरे से बाहर निकलीं — उनकी आँखों में शर्म, पर होंठों पर मुस्कान — समझ गई थीं कि एक नई रात बस आयी ह


सुबह की चाय पर भाभी ने अमित की ओर सीधे दृष्टि डाली:


“कल तुम्हें पता चल गया कि मैं सुनीता से… क्या कर रही थी,” कविता बोली,

“तुम्हें बुरा लगता है?”


अमित धीरे से जवाब देकर दिल की खिड़की बहार दे गया,

“नहीं भाभी, पर मुझे बहुत चाहती हूँ... आप दोनों से…”


सुबह की धूप में खटिया पर बैठकर सहज भावों की शुरुआत हुई। सुनीता आने तक तीनों की आंखों में एक सच्ची चाहत उभर रही थी।


सुनीता घास से भरा डब्बा लेकर लौटी और मुस्कराई:


“वातावरण कुछ गर्म लग रहा है, आज शाम और भी गर्म हो सकता है...”


भाभी की आँखों से लालिमा फिर जाग उठी। अमित ने गहरी साँस ली — दोनों ओर बुलाहट थी लेकिन कोई शब्द नहीं।


रात को बिजली फिर चली गई। दीया की रोशनी में भाभी और सुनीता खिड़की के पास थीं। उनसे दूरी बनाए रहा अमित।


रेखा ने धीरे से कहा,

“सुनीता, क्या तुमने तुम्हारी जिदगी की ठंडक चूसी है?”

और दोनों ही मुस्कुरा दीं।


सुनीता ने भाभी की तरफ झुककर, एक-एक नज़र के साथ पहले उनके ब्रेस्ट की मालिश की फिर धीरे से निप्पल को उंगली से घुमाया:


हीरे जैसा नाजुक स्पर्श, और कविता का शरीर कांप उठा।



अमित छत पर मौजूद था; चुपचाप देखता — बगल में गुलर का पेड़, पर उसकी नज़रें भीतर थीं।

रात का विवरण:

सुनीता की जीभ भाभी के स्तनों पर घूम रही थी, रेखा सांस फूंकते हुए पीछे झुकी हुई थीं।


अमित का लिंग सख्त हुआ। उसने खुद को रोकना चाहा, पर कमज़रानी में हर सांस, हर धड़कन बंध चुकी थी।



सुनीता नीचे झुकी और कविता की बूब्स को जीभ से चाटने लगी।

हर चुम्बन में कविता की सर्दियों की चाहत गर्म ताज़गी में बदलने लगी।


उसने धीरे से उपस्थिति फैलाने वाले शब्द कहे:


“आज तुम्हारी प्यास खुद मेरी जीभ बुझाएंगी।”


कविता के पाँव काँप रहे थे —

उनकी साड़ी खिसक चुकी थी; पिचकारी से गीली बाऊल्ड खुश्क करती थी।


सुनीता ने फिर से भाभी की बगल में खड़ी हो कर अमित को अपनी ओर खींचा:


“अब तेरी बारी है…”


अमित दोबारा सामने आया; बांसुरी सा शरीर सहला उठा।


उसने कविता के नीचे झुक कर उनकी गर्म योनि को पहली बार जीभ से चाटना शुरू किया।


तनिक देर में कविता ने कराहते हुए पल्लू से पूरा ब्लाउज़ खोल दिया।


कविता लेटीं और अमित ने धीरे से अपना लिंग उनकी गर्म, गीली योनि में घुसी —

“आह भाभी… चलो…”


धीमे तेज़ सा गतिक्रम —


मुख्यः भाभी मिशनरी पोज़


सुनीता पास से उनकी गरदन सहलाती



अमित ने धीरे से फिर तेज़ी बढ़ाई — तीनों की साँसों में गूंज रही थी आवाज़ें।



तीनों ने अंततः बिस्तर पर ऐसे पोज़ में जगह ली:


भाभी नीचे,


सुनीता ऊपर,


अमित बीच-बीच में दरार भरने



रात भर तीनों एक-दूसरे के अंगों को साकार और प्रतिभट करने लगे।


अमित ने ज़ोर से गहरी ठोकर मारी —

“मेरे अंदर… पानी… चाहती हूं…”


और उसके लिंग ने भाभी की योनि में गरम वीर्य छोड़ दिया।


सुनीता में पसिना बहने लगा —

तीनों उसी शाम, उस रात साथ रासायनिक मिलन में उतर गए।



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