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सोनम और रघुवीर चाचा – गांव की प्यास

 गाव की वो लंबी और सस्ती दोपहरें जब सूरज सिर पर होता है और लोग खाट पर लेट जाते हैं, उसी समय रघुवीर चाचा की निगाहें उसके ही घर में आई भतीजी सोनम पर टिक गई थीं।


सोनम, 19 साल की, कॉलेज की गर्मी की छुट्टियों में गांव आई थी। लंबा, पतला बदन, कमर पर झूलती साड़ी, और हर हरकत में कुछ ऐसा, जो रघुवीर के अंदर का मर्द कांपने लगा।


एक दिन जब वो आंगन में नहा रही थी, भीगी साड़ी से ढंकी उसकी कमर, पीठ और उभार… चाचा की आंखें वहीं अटक गईं।


रघुवीर छत से उसे चुपचाप देखते रहे – पहली बार उस दिन उनका लिंग खुद ही सख्त हो गया। उन्होंने वहीं खड़े-खड़े लुंगी के अंदर हाथ डाला और खुद को सहलाते हुए वह दृश्य पी लिया।


सोनम को लगा नहीं कि कोई देख रहा है... या शायद... वो चाहती थी कि कोई देखे?


अब ये रोज़ का खेल बन गया था। रघुवीर हर सुबह छत से देखता, और सोनम जाने-अनजाने साड़ी थोड़ी कम कसती, दुपट्टा थोड़ा ढीला करती, और कभी-कभी कमर झटक कर चलती।


रघुवीर एक रात खुद को रोक न पाया।


उसने एक पतली दीवार की ओट से देखा — सोनम अपने कमरे में अकेली थी। उसने ब्लाउज़ के हुक खोल दिए थे। बिना ब्रा, उसके बूब्स खुले हवा से सहमे खड़े थे।


वो बिस्तर पर लेटी थी, और उसने अपनी उंगलियां अपनी योनि की तरफ ले जाकर धीरे-धीरे मसलना शुरू किया। उसकी आंखें बंद थीं, होंठ आधे खुले। वो धीरे-धीरे कराह रही थी।


"आह… आह चाचा…"


रघुवीर सुनते ही झटके से वीर्य छोड़ बैठा। लेकिन अब सब्र टूट गया था।


एक दोपहर सोनम अकेली थी। बिजली नहीं थी। पसीने से भीगी साड़ी उसके शरीर से चिपकी थी।


रघुवीर अंदर आया और बगल में बैठ गया।


"बहुत गर्मी है ना?" उसने कहा।

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सोनम ने गीली आंखों से देखा, "हां चाचा… बहुत ज़्यादा… आपसे तो बर्दाश्त हो ही जाता होगा…"


उसके शब्दों में छुपी वासना थी।


रघुवीर ने धीरे से उसके हाथ पर हाथ रखा। सोनम कांपी, लेकिन हटाई नहीं।


उसने आगे बढ़कर धीरे-धीरे उसकी साड़ी खींचनी शुरू की। सोनम ने खुद ब्लाउज़ के हुक खोल दिए।


गोल, दूध जैसे बूब्स बाहर आते ही रघुवीर ने उन पर मुंह रख दिया। वो बारी-बारी से उन्हें चूसता रहा, हल्के से दांत से काटता, फिर जीभ से निपल घुमाता।


सोनम की सांसें तेज़ हो गईं – “चाचा… ये कैसा एहसास है…”




रघुवीर अब नीचे गया, और सोनम की साड़ी को जांघों तक ऊपर खींच दिया।


उसकी गुलाबी, हल्के बालों वाली योनि नंगी थी – थोड़ी-सी भीगी हुई।


रघुवीर ने पहले वहां उंगलियां फेरनी शुरू कीं — सोनम हिली, सिसकी — “आह… अंदर डालिए ना…”


रघुवीर ने जीभ से उसकी पूरी योनि को चाटना शुरू किया। ऊपर से नीचे, फिर नीचे से ऊपर, फिर क्लिट पर गोल गोल घुमा कर उसे पागल कर दिया।


"चाचा… मैं बह रही हूं…" – सोनम कांपने लगी थी।


जब वो चरमसुख तक पहुंची, उसका बदन थर-थर कांपने लगा, और उसने चाचा के सिर को कसकर पकड़ लिया।




उस रात, बिस्तर पर, रघुवीर पूरी तरह नंगा खड़ा था, और सोनम उसके सामने साड़ी उतार चुकी थी।


उसका लिंग, मोटा और लंबा, अब सोनम के चेहरे के करीब था।


सोनम ने उसे पकड़ा, और धीरे-धीरे मुंह में लिया। उसने जीभ से लिंग के टिप को चाटा, फिर नीचे की नसों पर जीभ घुमाई। वो पूरा चूस रही थी, आंखें बंद, होंठ फैले, और आवाज़ें रघुवीर को पागल कर रही थीं।


“अब सहा नहीं जाता…” – रघुवीर ने उसे बिस्तर पर लिटाया।


धीरे से अपने लिंग को सोनम की गीली योनि पर रगड़ा, फिर धीरे-धीरे अंदर घुसाया।


“आह… चाचा… बहुत मोटा है…”


रघुवीर ने सारा लिंग एक झटके में अंदर डाल दिया।


सोनम की चीख निकली – लेकिन सुख और दर्द दोनों में डूबी हुई।

खेत में, खुले आसमान के नीचे


एक दिन दोनों खेत में गए। आम के पेड़ की छांव में खाट बिछाई। पास ही नहर थी, पंछी चहचहा रहे थे।


सोनम ने वहीं चाचा की लुंगी खोल दी, और घास पर बैठकर फिर से लिंग को चूसने लगी।


इस बार वो तेज़ और गहराई से चूस रही थी, लार बहती जा रही थी।


फिर चाचा ने उसे खाट पर लिटाया, और खुले आसमान के नीचे, सोनम की जांघों को फैला कर उसका भरपूर चोदाई की।


“सुनसान खेत… तेरा बदन… और मेरी भूख…” – रघुवीर फुफकार रहा था।


उसने आखिर में सोनम को उठाकर अपनी गोद में बैठाया और बैठ कर अंदर भरा।


ओपन-एयर ऑर्गैज़्म, दोनों का साथ में।


अंत: जिस्म ही नहीं, अब आत्मा भी जुड़ गई थी


अब सोनम हर रात चाचा के कमरे में होती थी। वो उसे “चाचा” कहती रही – लेकिन अब उसमें एक अजीब रोमांस और हक था।


रातों को वो चाचा के सीने पर लेटकर कहती –

“अब आप सिर्फ मेरे हो…”


और रघुवीर हर दिन, हर पोज़िशन, हर ज़रूरत में उसे पूरा करता रहा।



रघुवीर अब पूरी तरह सोनम के नशे में था। उसकी गीली, गर्म योनि में एक बार घुसने के बाद वो खुद को रोक नहीं पा रहा था।


अब वो सिर्फ भरना नहीं चाहता था – हर एंगल से, हर पोज़िशन से, हर गहराई तक सोनम को चोदना चाहता था।





सोनम को बिस्तर पर लिटाकर रघुवीर ने उसकी टांगें पूरी खोल दीं, जांघें हवा में, और अपने लिंग को उसकी फूली हुई योनि के छेद पर टिकाया।


"मैं धीरे करूं?"


"नहीं चाचा... तोड़ दीजिए मुझे..." सोनम ने कमर उचका दी।


रघुवीर ने लिंग को एक ही झटके में पूरी तरह अंदर डाल दिया – थप्प्प!!


"आहह... चाचा... इतनी गहराई…" – सोनम की आंखें बंद, होंठ दांतों में दबे।


रघुवीर ने उसकी कलाई पकड़कर उसे नीचे दबाया और तेज़ी से झटके मारने लगा – हर धक्का उसकी पूरी योनि को हिला रहा था।


थप्प! थप्प! थप्प! – उसकी गीली योनि से आवाज़ें आ रही थीं।





"अब पीछे से…" रघुवीर ने सोनम को चारों हाथ-पैरों पर झुकाया, उसके नितंब हवा में थे – मस्त गोल, उभरे हुए, जैसे दो सफेद कलश।


उसने हाथ से एक बार उसकी गांड को थपका – चक!!


"आह... मारिए ना चाचा..." – सोनम कराह उठी।


रघुवीर ने लिंग को उसके पीछे से योनि के मुंह पर रखा और धीरे से दबाया – फिर अंदर… और अंदर…


अब वो अपनी पूरी ताकत से उसे चोद रहा था – उसका पेट आगे पीछे हिल रहा था, बूब्स नीचे लटक कर कांप रहे थे।


"आह... आह... चाचा... आप मुझे पागल कर रहे हैं…"


हर झटके पर सोनम की चूत से चपचप की आवाज़ आती।



सोनम अब खुद ऊपर आ गई।


"अब मैं कंट्रोल करूंगी…"


वो चाचा के लिंग पर धीरे-धीरे बैठी – जैसे कोई देवी, जो मर्द के शरीर को नियंत्रित कर रही हो।


"आह… कितना मोटा है चाचा…" – उसने खुद को नीचे धंसा दिया।


अब वो खुद ऊपर-नीचे उछल रही थी – उसके बूब्स जोर से उछल रहे थे, लार होंठों से बह रही थी, और कमर थरथरा रही थी।


"आपका लिंग मेरी आंतों तक जा रहा है… आहह…"


रघुवीर ने उसकी कमर पकड़कर और तेज़ झटके देने शुरू किए – अब दोनों साथ-साथ चरमसुख के कगार पर थे।



अब वो दोनों बिस्तर से उठे। रघुवीर ने सोनम को दीवार से टिकाया – उसकी टांगे उठाकर कमर के चारों तरफ लपेटीं।


सोनम का बदन दीवार से चिपका था, पीठ पर पसीना बह रहा था, और सामने से चाचा की मर्दाना छाती उसे दबा रही थी।


और लिंग? – फिर से गहराई तक धंसा हुआ।


“चाचा... आपका लंड मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा है... आह…”


रघुवीर ने उसकी गर्दन चूमी, बूब्स को हाथ से दबाया और फिर झटके देना शुरू किया।


"तेज़... और तेज़..." – सोनम चिल्लाई।


एक हाथ से उसने चाचा के बाल पकड़ लिए, और दूसरे से अपनी चूत को और खोलकर झटकों को और गहरा कर रही थी।




अब दोनों की सांसें उखड़ रही थीं।


"मैं झड़ने वाला हूं…" – रघुवीर की आवाज़ भारी हो गई।


"अंदर झाड़ दीजिए ना चाचा… सब मेरा है…" – सोनम ने अपनी जांघें और कस दीं।


अगले ही पल, रघुवीर का वीर्य उसकी योनि में गर्म दूध की तरह बहने लगा।


सोनम भी कांप गई – उसकी पूरी योनि में सनसनी दौड़ गई, और वो पहली बार पूरी तरह चरमसुख से भर उठी।


ये रात सिर्फ सेक्स नहीं थी – ये मर्द और औरत के बीच वासना का विस्फोट था।


और उन्होंने हर पोज़िशन में, हर कोने में, हर लहर में एक-दूसरे को जिया।

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