गर्मी की छुट्टियों में राजू, 20 साल का जवान लड़का, शहर से अपने ताऊजी के गाँव आया था। वहाँ उसका ज़्यादातर वक्त अकेले ही गुजरता था क्योंकि ताऊजी तो नौकरी के सिलसिले में शहर रहते थे। घर पर थी बस एक — चाची, राधिका।
चाची राधिका, उम्र 34, दुबली-पतली मगर बॉडी में घुमाव, नाभि के नीचे तक जाती हुई साड़ी, और सीने पर हमेशा तने हुए मोटे-मोटे बूब्स। हल्का मेकअप, हमेशा गजरा और एक खास बात — वो अकसर बिना ब्लाउज़ के ही पतली साड़ी पहनतीं।
राजू पहले तो उन्हें चाची मानता रहा, लेकिन हर दिन जब वो झुकी हुई नज़र आतीं, या कभी गीले बालों में नाइटी पहने घूमतीं — तो राजू के लिंग में गुदगुदी शुरू हो जाती।
एक रात राजू की नींद खुल गई।
उसे पेशाब लगी थी। जैसे ही वो बाहर आया, उसने देखा — चाची का कमरा आधा खुला हुआ था, और अंदर हल्की सी मोमबत्ती की रोशनी थी।
राजू पास गया… धीरे-धीरे… और झांका।
चाची राधिका, आइने के सामने खड़ी थीं। पूरी नंगी।
बिल्कुल नंगी। कोई कपड़ा नहीं।
राजू की आँखें फटी की फटी रह गईं।
बूब्स बड़े, सफेद, भारी और गोल। नीचे हल्की झलक में घने बालों से भरी गीली योनि।
चाची ने हाथ में तेल लिया और अपने बूब्स पर मालिश करना शुरू किया।
उनके होंठों से निकली धीमी आवाज़:
"हम्म्म… राधा… तू भी पागल हो रही है… एक मर्द का स्पर्श चाहिए…"
राजू की साँसे तेज़, लिंग सख्त हो चुका था। वो वहीं दीवार से चिपका रहा — आँखें चाची की गीली और थरथराती देह पर।
सुबह चाची ने देखा कि राजू उसे बहुत ध्यान से देख रहा था।
"क्या हुआ राजू, कुछ चाहिए?"
राजू ने सर झुका लिया। लेकिन उसकी नज़र फिर से चाची की साड़ी से झांकते बूब्स पर टिक गई।
चाची ने हल्की मुस्कान दी — "देख ले बेटा, तेरी नज़रें छुपती नहीं मुझसे…"
राजू शरमा गया। लेकिन उस दिन के बाद चाची भी समझ गईं कि राजू अब बच्चा नहीं रहा।
एक दोपहर को चाची नहा रही थीं।
राजू को पता था कि बाथरूम की एक ईंट ढीली है — जहाँ से अंदर झाँका जा सकता है।
वो चुपचाप गया… और ईंट से आँख लगाई।
चाची पूरी तरह गीली थीं — नाइटी उतार कर नंगी होकर नहा रही थीं।
उनके बूब्स पर साबुन की झाग थी… वो अपनी योनि को मल-मल कर धो रही थीं।
"हम्म्म्म... राधा… तू अब और नहीं सह सकती…"
वो खुद से बुदबुदा रही थीं।
राजू का लिंग बाहर निकाल कर सख्त हो चुका था।
वो धीरे-धीरे खुद को सहलाने लगा।
और तभी… चाची की नज़र दरार पर पड़ी।
वो मुस्कराईं… और जानबूझकर अपने दोनों बूब्स को निचोड़ने लगीं।
"देख ले राजू… अब तो तू फँस ही चुका है…"
रात को राजू जैसे ही बिस्तर पर लेटा, चाची खुद उसके कमरे में आईं।
नीली ट्रांसपेरेंट नाइटी, जिसमें ब्रा नहीं, सिर्फ़ हिलते हुए बूब्स।
"राजू, तू मुझे कब तक झांकता रहेगा?"
राजू घबरा गया —
"मैं… चाची… मैं माफ़ी चाहता हूँ…"
"माफ़ी नहीं चाहिए मुझे… वो स्पर्श चाहिए… जो तू अपनी आँखों से ले रहा था…"
चाची ने उसके बिस्तर पर चढ़ते हुए कहा।
राजू अब पूरी तरह पसीने में — मगर लिंग पूरा खड़ा
राजू का लिंग जब पूरी तरह खड़ा हो चुका था और चाची की आँखों में भूख दिखने लगी, तो उन्होंने एक हल्की मुस्कान दी और फुसफुसाईं:
"अब मैं तुझसे अपना मीठा हिस्सा चाटवाऊँगी… लेकिन पहले मुझे तेरा स्वाद चखने दे..."
चाची ने धीरे से राजू को पलंग पर बैठाया, और खुद उसके पैरों के बीच में बैठ गईं। उन्होंने राजू के लिंग को अपने नर्म, मुलायम हाथों में पकड़ा — लिंग पहले से ही पूरा तनकर खड़ा था, उसकी नसें बाहर निकली हुई थीं।
"हम्म… कितना गर्म है तेरा लिंग…"
कहते हुए चाची ने लिंग की नोक पर अपनी गुलाबी ज़ुबान फेरी — और फिर पूरा मुँह खोलकर उसे अपने होंठों के बीच ले लिया।
"चप… चप… चूस… चूस…"
राजू की आँखें उलट गईं, सिर पीछे गिरा।
चाची का मुँह एकदम गीला, लार से भरा, लिंग को अंदर-बाहर कर रही थीं…
उनकी ज़ुबान लिंग की जड़ से लेकर टिप तक गोलाई में घूमती, और फिर वो लिंग को गहराई तक ले जातीं — गले तक।
राजू:
"चाची... ओह चाची... आप कैसे चूस रही हो... सब कुछ निकल जाएगा..."
चाची ने मुँह से लिंग निकाला, होंठ चाटते हुए कहा:
"मैंने हर स्वाद चखा है राजू... लेकिन तेरा लिंग अब मेरी कमजोरी बन चुका है..."
अब चाची लेट गईं, और अपनी नाइटी पूरी तरह ऊपर कर दी।
उनकी जाँघों के बीच में घने बालों से ढँकी गीली, फूलती हुई योनि चमक रही थी।
"अब आ... मेरी योनि को अपनी ज़ुबान से भिगो..."
राजू नीचे गया, और जैसे ही उसने चाची की योनि की लकीर पर ज़ुबान फेरी — चाची की कमर हिल गई।
"आह्ह्ह... ओह्ह राजू... हाँ... ऐसे ही..."
राजू अब योनि की भीतरी तहों को अपनी ज़ुबान से चाट रहा था —
उसने अपनी ज़ुबान की नोक चाची की भगनाशी (clit) पर रखी और उसे गोल-गोल घुमाने लगा।
चाची की टाँगें कांपने लगीं, दोनों हाथों से उन्होंने राजू के बाल पकड़ लिए।
"मेरी योनि में आग लग रही है... चाटते रहो... तेज़… और तेज़!"
राजू अब अपनी ज़ुबान को पूरी तरह अंदर तक डाल रहा था —
चप… चप… चप… की आवाजें कमरे में गूंज रहीं थीं।
चाची का शरीर झनझना उठा —
"ओह्ह राजू... मैं आ रही हूँ... मेरी योनि में तूने तूफ़ान ला दिया..."
राजू का मुँह चाची की गीली, स्वाद से भरी योनि से भर चुका था।
उसने सबकुछ चाट डाला… चाची की साँसें तेज़, होंठ खुले और शरीर पसीने से तर।
"तू अब सिर्फ़ मेरा है… मैं तुझे हर दिन चाटूँगी… तू मुझे चाटेगा… जब तक हम एक-दूसरे के शरीर को याद न कर लें!"
1 घंटे तक दोनों साथ सोए और फिर
चाची पलंग पर, पाँव फैलाए।
"आजा राजू… अब अंदर डाल…"
राजू ने लिंग को पकड़कर चाची की गीली योनि के अंदर धीरे से डाला।
"ओह्ह्ह्ह… हाँ… यही चाहिए था…"
धीरे-धीरे अंदर-बाहर… फिर रफ़्तार बढ़ती गई…
"थप… थप… थप…" बूब्स उछल रहे थे। चाची की आँखें बंद थीं।
अब चाची ने करवट बदली — घुटनों के बल झुकीं और बोलीं:
"डॉगी में ले ले बेटा… मेरी पसंदीदा है ये!"
राजू ने पीछे से लिंग डाल दिया। अब झटके तेज़ हो गए।
"हाँ बेटा! और तेज़!"
चाची की कमर हिल रही थी, योनि से गीलेपन की आवाजें आ रही थीं।
अंत में चाची ने खुद राजू को अपनी गोद में खींच लिया —
और अपने दोनों बूब्स के बीच लिंग फँसाकर मसला।
"तू इसमें ही छोड़ दे बेटा… मेरे बूब्स को तेरे वीर्य से गीला कर दे…"
राजू ने कराहते हुए सबकुछ वहीं छोड़ दिया।
वीर्य बूब्स पर गिरा — चाची ने उसे उंगली से उठाया और चाट लिया।
"अब तू सिर्फ़ मेरा है… हर रात, हर पोजिशन में…"