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बड़ी बहन रेशमा को घोड़ी बनाकर चोदा

बड़ी बहन रेशमा को घोड़ी बनाकर चोदा

मेरा नाम अतुल है और मैं 23 साल का एक युवक हूँ, मेरी दीदी का नाम रेशमा है। उसकी उम्र करीब 26 साल है। रेशमा दी मुझसे 3 साल बड़ी हैं। हम लोग एक मध्यम वर्ग परिवार से हैं और एक छोटे से फ्लैट में दिल्ली में रहते हैं।


हमारे घर में एक छोटा सा हॉल, डायनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है। बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे। हमारे पिताजी और माँ दोनों नौकरी करते हैं।


रेशमा दी मुझको अतुल कह कर पुकारती हैं और मैं उनको रेशमा दी कह कर पुकारता हूँ।


शुरू शुरू में मुझे सेक्स के बारे कुछ नहीं मालूम था, मैं कॉलेज में पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग में भी अच्छी मेरे उम्र की कोई लड़की नहीं थी। इसलिए मैंने अभी तक सेक्स का मजा नहीं लिया था और ना ही मैंने अब तक कोई नंगी लड़की देखी थी। हाँ मैं कभी कभी पॉर्न मैगजीन में नंगी तस्वीरें देख लिया करता था।


जब मुझे लड़कियों के तरफ और सेक्स के लिए रूचि होना शुरू हुआ। मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लड़की थी तो वो रेशमा रेशमा दी ही थीं।


रेशमा दी की लंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहरा और शारीरिक बनावट हिंदी सिनेमा के जीनत अमान जैसा था। हाँ उनकी चूचियाँ जीनत अमान जैसे बड़ी बड़ी नहीं थी।

मुझे अभी तक याद है की मैंने अपना पहला मुठ मेरी रेशमा दी के लिए ही मारा था।


एक रविवार सुबह सुबह जैसे ही मेरी रेशमा दी बाथरूम से निकलीं, मैं बाथरूम में घुस गया।


मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद किया और अपने कपड़े खोलने शुरू किए। मुझे जोरों की पेशाब लगी थी। पेशाब करने के बाद मैं अपने लंड से खेलने लगा।


एकाएक मेरी नजर बाथरूम के किनारे रेशमा दी के उतरे हुए कपड़ों पर पड़ी। वहाँ पर रेशमा दी अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गई थीं। जैसे ही मैंने रेशमा दी का नाइटगाऊन उठाया तो देखा की नाइटगाऊन के नीचे रेशमा दी की ब्रा पड़ी थी।


जैसे ही मैंने रेशमा दी की काले रंग की ब्रा उठाई तो मेरा लंड अपने आप खड़ा होने लगा। मैंने रेशमा दी का नाइटगाऊन उठाया तो उसमें से रेशमा दी के नीले रंग का पैंटी भी नीचे गिर गई। मैंने पैंटी भी उठा ली। अब मेरे एक हाथ में रेशमा दी की पैंटी थी और दूसरे हाथ में रेशमा दी की ब्रा थी।


ओह भगवान ! रेशमा दी के अन्दर वाले कपड़े चूमने से ही कितना मजा आ रहा है यह वही ब्रा है जिसमें कुछ देर पहले रेशमा दी की चूचियाँ जकड़ी हुई थी और यह वही पैंटी है जो कुछ देर पहले तक रेशमा दी की चूत से लिपटी थी।


यह सोच सोच करके मैं हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था। मैं सोच नहीं पा रहा था कि मैं रेशमा दी की ब्रा और पैंटी को लेकर क्या करूँ।


मैंने रेशमा दी की ब्रा और पेंटी को लेकर हर तरफ़ से छूआ, सूंघा, चाटा और पता नहीं क्या क्या किया। मैंने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला, ब्रा को अपने छाती पर रखा। मैं अपने खड़े लंड के ऊपर रेशमा दी की पैंटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था।


फिर बाद में मैं रेशमा दी की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया। फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग में फँसा दिया और पेंटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया।


अब ऐसा लग रहा था कि रेशमा दी बाथरूम में दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पेंटी दिखा रही हैं। मैं झट से जाकर रेशमा दी के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा की मैं रेशमा दी की चूची चूस रहा हूँ।


मैं अपने लंड को रेशमा दी की पेंटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा की मैं रेशमा दी को चोद रहा हूँ।


मैं इतना गरम हो गया था कि मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनटना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मैं झड़ गया। मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से रेशमा दी की पैंटी और नाइटगाऊन भीग गया था।


मुझे पता नहीं कि मेरे लंड ने कितना वीर्य निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे रेशमा दी के नाम पर निकला था।


मेरा पहले पहले बार झड़ना इतना तेज था कि मेरे पैर जवाब दे गए, मैं पैरों पर ख़ड़ा नहीं हो पा रहा था और मैं चुपचाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद मुझे होश आया तो मैं उठ कर नहाने लगा।


शॉवर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताजगी महसूस हुई और मैं फ़्रेश हो गया। नहाने के बाद मैं दीवार से रेशमा दी की नाइटगाऊन, ब्रा और पैंटी उतारा और उसमें से अपना वीर्य धोकर साफ़ किया और नीचे रख दिया।


उस दिन के बाद से मेरा यह मुठ मारने का तरीका मेरा सबसे पसंदीदा हो गया। हाँ, मुझे इस तरह से मुठ मारने का मौका सिर्फ इतवार को ही मिलता था, क्योंकि इतवार के दिन ही मैं रेशमा दी के नहाने के बाद नहाता था।


इतवार के दिन चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ा देखा करता था कि कब रेशमा दी बाथरूम में घुसे और रेशमा दी के बाथरूम में घुसते ही मैं उठ जाया करता था और जब रेशमा दी बाथरूम से निकलती तो मैं बाथरूम में घुस जाया करता था।


मेरे माँ और पिताजी सुबह सुबह उठ जाया करते थे और जब मैं उठता था तो माँ रसोई में नाश्ता बनाती होतीं और पिताजी बाहर बालकनी में बैठ कर अखबार पढ़ते होते या बाज़ार गए होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने।


इतवार को छोड़ कर मैं जब भी मुठ मारता तो तब यही सोचता कि मैं अपना लंड रेशमा दी की रस भरी चूत में पेल रहा हूँ। शुरू शुरू में मैं यह सोचता था कि रेशमा दी जब नंगी होंगी तो कैसी दिखेंगी? फिर मैं यह सोचने लगा कि रेशमा दी की चूत चोदने में कैसा लगेगा।


मैं कभी कभी सपने में रेशमा दी को नंगी करके चोदता था और जब मेरी आँखें खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था।


मैंने कभी भी अपनी सोच और अपने सपने के बारे में किसी को भी नहीं बताया था और न ही रेशमा दी को भी इसके बारे में जानने दिया।


मैं अपनी स्कूल की पढ़ाई खत्म करके कालेज जाने लगा। कॉलेज में मेरी कुछ गर्लफ्रेंड भी हो गई। उन गर्लफ्रेंड में से मैंने दो चार के साथ सेक्स का भी मजा लिया।


मैं जब कोई गर्लफ्रेंड के साथ रेशमा दी करता तो मैं उसको अपने रेशमा दी के साथ तुलना करता और मुझे कोई भी गर्लफ्रेंड रेशमा दी के बराबर नहीं लगती!


मैं बार बार यह कोशिश करता था कि मेरा दिमाग रेशमा दी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग घूम फिर कर रेशमा दी पर ही आ जाता। मैं हमेशा 24 घंटे रेशमा दी के बारे में और उसको चोदने के बारे में ही सोचता रहता।


मैं जब भी घर पर होता तो रेशमा दी को ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी रेशमा दी को नहीं थीं। रेशमा दी जब भी अपने कपड़े बदलती थीं या माँ के साथ घर के काम में हाथ बटाती तो मैं चुपके चुपके उन्हें देखा करता था और कभी कभी मुझे उनकी सुडौल चूची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।


रेशमा दी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं रेशमा दी के दो भरे भरे चूची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था।


मेरा सबसे अच्छा टाइम पास था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना, और जब रेशमा दी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चूचियों को छूना।


हमारे घर की बालकोनी कुछ ऐसी थी कि उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में थी और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे।


मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेलिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।


कभी कभी रेशमा दी आती तो मैं थोड़ा हट कर रेशमा दी के लिए जगह बना देता और रेशमा दी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता कि रेशमा दी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। रेशमा दी की भरी भरी चूची मेरे सीने से सट जाता था।


मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो कि बालकोनी के रेलिंग के सहारे रहती वे रेशमा दी की चूचियों से छू जाती थी।


मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे रेशमा दी की चूचियों पर हल्के हल्के चलाता था और रेशमा दी को यह बात नहीं मालूम थी। मैं उँगलियों से रेशमा दी की चूची को छू कर देखा कि उनकी चूची कितनी नरम और मुलायम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती है कभी कभी मैं रेशमा दी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था।


मैं हमेशा ही रेशमा दी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छूता था।


मैं समझता था कि रेशमा दी मेरे हरकतों और मेरे इरादों से अनजान हैं रेशमा दी को इस बात का पता भी नहीं था कि उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था।

फिर एक दिन रेशमा दी ने मुझे पकड़ लिया। उस दिन रेशमा दी किचन में जा कर अपने कपड़े बदल रही थीं। हॉल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। रेशमा दी दूसरी तरफ़ देख रही थीं और अपनी कुर्ती उतार रही थीं और उनकी ब्रा में छूपी हुई चूची मेरे नज़रों के सामने था।


फ़िर रोज़ की तरह मैं टी वी देख रहा था और रेशमा दी को भी कनखियों से देख रहा था।


रेशमा दी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगे शीशे को देखा और मुझे आँखें फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। रेशमा दी ने देखा कि मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और रेशमा दी की आँखे शीशे में टकरा गई मैं शर्मा गया और अपनी आँखें टी वी की तरफ़ कर ली।


मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया कि रेशमा दी जान गई हैं कि मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब रेशमा दी क्या करेंगी?

क्या रेशमा दी माँ और पिताजी को बता देंगी? क्या रेशमा दी मुझसे नाराज़ होंगी?

इसी तरह से हज़ारों प्रश्न मेरे दिमाग़ में घूम रहे थे। मैं रेशमा दी की तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।


उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दिनों तक मैं रेशमा दी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दिनों में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और रेशमा दी को फिर से घूरना चालू कर दिया।


रेशमा दी ने मुझे 2-3 बार फिर घूरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोलीं। मैं समझ गया कि रेशमा दी को मालूम हो चुका है कि मैं क्या चाहता हूँ!


ख़ैर जब तक रेशमा दी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से रेशमा दी को घूरने लगा।

एक दिन मैं और रेशमा दी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। रेशमा दी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थीं और मैं अपने उँगलियों को रेशमा दी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था।


मुझे लगा कि रेशमा दी को शायद यह बात नहीं मालूम कि मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकि रेशमा दी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थीं।


लेकिन मैं यह तो समझ रहा था क्योंकि रेशमा दी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से रेशमा दी की चूचियों को छू सकता हूँ।


हम लोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हम लोग कॉलेज और स्पोर्ट्स के बारे में बातें कर रहे थे। हमारे बालकोनी से सामने एक गली थी तो हम लोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था।


बातें करते करते रेशमा दी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़ कर अपनी चूची से हटा दिया। रेशमा दी को अपनी चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बातें करना बंद कर दीं और उनकी शरीर कुछ अकड़ गईं लेकिन, रेशमा दी अपने जगह से हिलीं नहीं और मेरे हाथों से सट कर खड़ी रहीं।


रेशमा दी ने मुझसे कुछ नहीं बोलीं तो मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने अपना पूरा का पूरा पंजा रेशमा दी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।


मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं रेशमा दी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर काँप रहा था। लेकिन रेशमा दी कुछ नहीं बोलीं। रेशमा दी सिर्फ़ एक बार मुझे देखीं और फिर सड़क पर देखने लगीं। मैं भी रेशमा दी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था।


मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपने हाथ से रेशमा दी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे रेशमा दी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद रेशमा दी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथों से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। रेशमा दी की चूची काफ़ी बड़ी थी और मेरे पंजों में नहीं समा रही थी।


थोड़ी देर बाद मुझे रेशमा दी की कुर्ती और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निप्पल तन गईं और मैं समझ गया कि मेरे चूची मसलने से रेशमा दी गरमा गईं हैं रेशमा दी की कुर्ती और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उसके ऊपर से मुझे रेशमा दी की निप्पल तनने के बाद रेशमा दी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।


किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब तक रेशमा दी की चूचियों को मसलता रहा। और रेशमा दी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। रेशमा दी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपनी चूची मसलवाती रही।


रेशमा दी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था। मुझे बहुत मजा आ रहा था लेकिन एकाएक माँ की आवाज़ सुनाई दी। माँ की आवाज़ सुनते ही रेशमा दी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चूची से हटा दिया और माँ के पास चली गईं उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात रेशमा दी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा।


दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद रेशमा दी बालकोनी में आईं और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गईं मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा रेशमा दी की तरफ़ देखता रहा।


रेशमा दी ने मेरे तरफ़ देखीं। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन रेशमा दी नहीं मुस्कुराईं और चुपचाप सड़क पर देखने लगीं।


मैं रेशमा दी से धीरे से बोला- छूना है.

मैं साफ़ साफ़ रेशमा दी से कुछ नहीं कह पा रहा था।

और पास आ रेशमा दी ने पूछा- क्या छूना चाहते हो?

साफ़ साफ़ रेशमा दी ने फिर मुझसे पूछीं।


तब मैं धीरे से रेशमा दी से बोला- तुम्हारी दूध छूना!

रेशमा दी ने तब मुझसे तपाक से बोलीं- क्या छूना है साफ़ साफ़ बोलो?


मैं तब रेशमा दी से मुस्कुरा कर बोला- तुम्हारी चूची छूना है उसको मसलना है।

“अभी माँ आ सकती है.” रेशमा दी तब मुस्कुरा कर बोलीं।


मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी रेशमा दी से बोला- जब माँ आएगी तो हमें पता चल जायेगा।

मेरे बातों को सुन कर रेशमा दी कुछ नहीं बोलीं और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गईं, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहे थे।


मैं समझ गया कि रेशमा दी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही हैं अबतक रेशमा दी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थीं। लेकिन आज जानबूझ कर मुझसे सट कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही हैं क्योंकि आज रेशमा दी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा।


जैसे रेशमा दी पास आ गईं और अपने हाथों से रेशमा दी को और पास खींच लिया। अब रेशमा दी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी। मैंने अपना हाथ रेशमा दी की चूची पर टिका दिया।


रेशमा दी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं रेशमा दी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हें कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी रेशमा दी की कुर्ती और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े की थी,


और उस में से मुझे रेशमा दी की निप्पल तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था। मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से रेशमा दी की निप्पल को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।


मैं जितनी बार रेशमा दी की निप्पलों को दबा रहा था, उतनी बार रेशमा दी कसमसा रही थीं और रेशमा दी की मुँह शरम के मारे लाल हो रहा थी। तब रेशमा दी ने मुझसे धीरे से बोलीं- धीरे दबा, तब मैं लगता धीरे धीरे करने।


मैं और रेशमा दी ऐसे ही फालतू बातें कर रहे थें और देखने वाले को यही दिखता कि मैं और रेशमा दी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे थें। लेकिन असल में मैं रेशमा दी की चूचियों को अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था।


थोड़ी देर बाद माँ ने रेशमा दी को बुला लिया और रेशमा दी चली गईं ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।


मैं रोज़ रेशमा दी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं रेशमा दी की दोनों चूचियों को अपने दोनो हाथों से पकड़ कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा।


एक दिन शाम को मैं हॉल में बैठ कर टी वी देख रहा था। माँ और रेशमा दी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थीं। कुछ देर के बाद रेशमा दी काम ख़त्म करके हॉल में आ कर बिस्तर पर बैठ गईं, रेशमा दी ने थोड़ी देर तक टी वी देखीं और फिर अख़बार उठा कर पढ़ने लगीं।


रेशमा दी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थीं और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थीं। मेरा पैर रेशमा दी को छू रहा था। मैंने अपने पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर रेशमा दी की जांघो को छू रहा था।


मैं रेशमा दी की पीठ को देख रहा था। रेशमा दी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहनी हुई थीं और मुझे रेशमा दी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था।


मैं धीरे से अपना एक हाथ रेशमा दी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से रेशमा दी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ रेशमा दी की पीठ को छुआ रेशमा दी की शरीर अकड़ गया।


रेशमा दी ने तब दबी जुबान से मुझसे पूछीं- यह तुम क्या कर रहे हो, तुम पागल तो नहीं हो गये, माँ अभी हम दोनो को किचन से देख लेंगी.

रेशमा दी ने दबी जुबान से फिर मुझसे बोलीं।

“माँ कैसे देख लेंगी?” मैंने रेशमा दी से कहा।

“क्या मतलब है तुम्हारा?” रेशमा दी ने पूछीं।

“मेरा मतलब यह है कि तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर माँ हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी।”

मैंने रेशमा दी से धीरे से कहा।


“तू बहुत स्मार्ट और शैतान है!” रेशमा दी ने धीरे से मुझसे बोलीं।


फिर रेशमा दी चुप हो गईं और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढ़ने लगीं। मैं भी चुपचाप अपना हाथ रेशमा दी के दाहिने बगल के ऊपर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ रेशमा दी की दाहिने चूची पर रख दिया।


जैसे ही मैं अपना हाथ रेशमा दी के दाहिने चूची पर रखा रेशमा दी कांप गईं मैं भी तब इत्मिनान से रेशमा दी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।


थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से रेशमा दी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से रेशमा दी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा।


रेशमा दी कुछ नहीं बोलीं और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ़ती रही। मैं रेशमा दी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। रेशमा दी की टी शर्ट रेशमा दी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपर नहीं उठ रही थी।


मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। रेशमा दी को मेरे दिमाग की बात पता चल गया। रेशमा दी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से रेशमा दी के पीठ पर अपना ऊपर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था रेशमा दी का।


मैं धीरे धीरे रेशमा दी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठा दिया और रेशमा दी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को रेशमा दी की पीठ पर ब्रा के ऊपर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ रेशमा दी कांपने लगीं।


फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं रेशमा दी की दोनो चूचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।


रेशमा दी की निप्पल इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मजा आ रहा था। मैं तब आराम से रेशमा दी की दोनों चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निप्पल खींचने लगा।


माँ अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को माँ साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा था कि रेशमा दी कैसे मुझे अपनी चूचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब माँ घर में मौजूद हैं।


मैं तब अपना एक हाथ फिर से रेशमा दी के पीठ पर ब्रा के हुक तक ले आया और धीरे धीरे रेशमा दी की ब्रा की हुक को खोलने लगा।


रेशमा दी की ब्रा बहुत टाईट थी


और मुझसे हुक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार माँ की तरफ़ देख रहा था।


माँ ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी।

रेशमा दी मुझसे बोलीं, यह अख़बार पकड़, अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रेप को लगाना पड़ेगा।


“मैंने बगल से हाथ निकल कर रेशमा दी के सामने अख़बार पकड़ लिया और रेशमा दी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हुक को लगाने लगीं।


मैं पीछे से ब्रा का हुक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी कि रेशमा दी को भी हुक लगाने में दिक्कत हो रहीं थी। आख़िरकार रेशमा दी ने अपनी ब्रा की हुक को लगा लिया।


जैसे ही रेशमा दी ने ब्रा की हुक लगा कर अपने हाथ सामने किए माँ कमरे में फिर से आ गईं माँ बिस्तर पर बैठ कर रेशमा दी से बातें करने लगीं।

मैं उठ कर टॉयलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकि मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था।


दूसरे दिन जब मैं और रेशमा दी बालकोनी पर खड़े थें तो रेशमा दी मुझसे बोलीं- हम कल रात क़रीब क़रीब पकड़ लिए गए थे। मुझे बहुत शरम आ रही थी।

“मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतनी टाईट थी कि मुझसे उसकी हुक नहीं लगी.” मैंने रेशमा दी से कहा।


रेशमा दी तब मुझसे बोलीं- मुझे भी बहुत दिक्कत हो रहीं थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रेप लगाने में बहुत शरम आ रही थी.

“रेशमा दी तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगाती हो?” मैंने रेशमा दी से धीरे से पूछा।

रेशमा दी बोलीं- हम लोग! फिर रेशमा दी समझ गईं की मैं रेशमा दी से मजाक कर रहा हूँ तब बोलीं- तू बाद में अपने आप समझ जाएगा।


फिर मैंने रेशमा दी से धीरे से कहा- मैं तुमसे एक बात कहूँ?

“हाँ!” रेशमा दी तपाक से बोलीं।


“रेशमा दी तुम सामने हुक वाली ब्रा क्यों नहीं पहनती, मैंने रेशमा दी से पूछा?

रेशमा दी तब मुस्कुरा कर बोलीं, सामने हुक वाली ब्रा बहुत महँगी है। मैं तपाक से रेशमा दी से कहा- कोई बात नहीं, तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मैं तुम्हें पैसे दे दूंगा।


मेरे बातों को सुनकर रेशमा दी मुस्कुराते हुए बोलीं- तेरे पास इतने सारे पैसे हैं, चल मुझे एक 100 का नोट दे।

मैं भी अपना पर्स निकाल कर रेशमा दी से बोला- तुम मुझसे 100 का नोट ले लो रेशमा दी!

मेरे हाथ में 100 का नोट देख कर बोलीं- नहीं, मुझे रुपया नहीं चाहिए। मैं तो यूँही मजाक कर रही थी।


“लेकिन मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। रेशमा दी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले लो.” और मैं ज़बरदस्ती रेशमा दी के हाथ में वो 100 का नोट थमा दिया।


रेशमा दी कुछ देर तक सोचती रहीं और वो नोट ले लिया और बोलीं- मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती, और मैं यह रुपये ले रही हूँ। लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ।


मैं भी रेशमा दी से बोला- सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना। मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पेंटी भी ख़रीदना रेशमा दी।

रेशमा दी शर्मा गईं और मुझे मारने के लिए दौड़ीं लेकिन मैं अंदर भाग गया।


अगले दिन शाम को मैं रेशमा दी को अपनी किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना। मैंने सुना की रेशमा दी अपनी सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही हैं।


मैं रेशमा दी को अकेला पाकर बोला- मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूँ?

रेशमा दी कुछ सोचती रहीं और फिर बोलीं- सोनू, मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रहीं है और फिर मैंने माँ से भी अभी नहीं कही है कि मैं शॉपिंग के लिए जा रही हूँ।


मैंने रेशमा दी से कहा- तुम जाकर माँ से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना, माँ तुम्हें जाने देंगी। फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोन कर देंगे कि मार्केटिंग का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है। ठीक है ना?

“हाँ”, यह बात मुझे भी ठीक लगती है, मैं जा कर माँ से बात करती हूँ!”और यह कह कर रेशमा दी माँ से बात करने अंदर चली गईं, माँ ने तुरंत रेशमा दी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दीं।


उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक रेशमा दी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और रेशमा दी के चूतड़ मेरे जांघों से टकरा रहे थे।


मैं रेशमा दी के पीछे चल रहा था जिससे की रेशमा दी को कोई धक्का ना मार दे। हम जब भी कोई फुटपाथ के दुकान में खड़े होकर कपड़े देखते तो रेशमा दी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होतीं और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता।


अगर रेशमा दी कोई दुकान पर कपड़े देखतीं तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चूतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता।

हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों को रेशमा दी कुछ समझ नहीं पा रही थीं क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी।

कहानी जारी रहेगी।

 बड़ी बहन रेशमा को घोड़ी बनाकर चुदाई पार्ट 2



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