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पड़ोस की दीपिका आंटी की चुदाई भाग 1

दीपिका आंटी के साथ सैक्स कहनी 

मेरी इस चुदाई हिंदी स्टोरी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपने पड़ोस में नयी आई आंटी को चोदा और उसकी कामवासना और अपने लंड का पानी डाल कर उसे शांत किया

मेरा नाम कमलेश है। मैं बनारस से हूँ। ये मेरी पहली चुदाई हिंदी स्टोरी है। मुझे उम्मीद है कि आप लोगों को बहुत पसंद आएगी।


मेरी हाइट 5 फुट 5 इंच है। मैं एक प्राइवेट जॉब करता हूँ। मुझे आंटी और आंटी बहुत मस्त लगती हैं क्योंकि वो जब साड़ी में मेरे सामने होती हैं तो मेरा मन करता है कि उनको अपनी बांहों में भरके उनके होंठों को चूम लूं। उनको पूरा निचोड़ कर उनके हुस्न के रस का एक एक कतरा पी जाऊं।


मेरे घर में सिर्फ मेरी माँ ही मेरे साथ रहती हैं क्योंकि मेरे पिता जी बाहर ड्यूटी करते हैं।


ये कहानी उस समय की है जब मैं ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में था। उसी दौरान मेरे घर के बगल वाले घर में एक नया परिवार किराये पर रहने के लिए आया।

एक दो दिन बाद पता चला कि उस परिवार में एक भैया हैं, जो कि फील्ड वर्क का काम करते है। उनको अपने काम से कई बार बनारस से बाहर भी जाना होता था।

भैया की अनुपस्थिति में उनके घर में उनकी माता जी और पिता जी और एक छोटी बहन और उनकी बीवी ही रहते थे।


मैं सुबह ही अपने कॉलेज निकल जाता था, फिर सीधे शाम को ही घर आता था। मैं कॉलेज से आने के बाद एक दो ट्यूशन भी पढ़ाता था।


सिर्फ रविवार को ही मेरे बगल के परिवार से मेरी बातचीत होती थी। वो भी सिर्फ अंकल और आंटी जी से बात होती थी। इसी तरह लगभग दो-तीन महीने बीत गए।


एक शाम को माँ ने बोला- बेटा बगल की आंटी आयी थीं, वो तुमको पूछ रही थीं।

मैंने पूछा- क्यों … क्या हुआ माँ? सब ठीक तो है ना?

माँ बोलीं- मुझे पता नहीं, तू जाकर पता कर लेना।


मैं माँ के कहे अनुसार आंटी के घर गया। और उनके घर की घंटी बजाई।

एक-दो बार घंटी बजाने पर भी कोई नहीं निकला। मैं जैसे ही वहां से निकलने के लिए वापस घूमा, तो अन्दर से आवाज आई- रुकिए आती हूँ।


एक पल बाद दरवाजा खुला तो मैंने देखा कि एक बहुत ही सुंदर औरत खड़ी थी।


दोस्तो, क्या बताऊं कि वो कैसी लग रही थी। वो खुले बाल में, लाल रंग की साड़ी में लिपटी हुई मेरे सामने थी। उसका गोरा बदन देख कर मैं हतप्रभ था।


उसकी दशा देखकर लग रहा था मानो उसने जल्दी-जल्दी में साड़ी पहनी हो। उसके बदन से एक-एक करके पानी की बूंदें टपक रही थीं।

कुछ बूंदें उसके चेहरे से होते हुए उसके गालों को चूमते हुए टपक रही थीं। गालों से टपकती बूंदें उसके गले से होते हुए ब्लाउज के अन्दर जा रही थीं। कुछ बूंदें उसके पेट से होते हुए कमर तक … और फिर कमर से होते हुए उसकी कमर से बंधी साड़ी में गायब हो जा रही थीं।


इतना सब देख कर मेरे 6 इंच के खीरे में हरकत होने लगी। आपने एक भरा पूरा खीरा तो देखा ही होगा, जिसकी लंबाई 6 इंच की होगी। ठीक वैसे ही आकार का लम्बा और मस्त मोटा मलंग किस्म का मेरा लंड फुंफकार मारने लगा था। उस समय मेरा अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था। वो मुझसे उम्र में लगभग बराबर की ही थी। हालांकि वो मेरे पड़ोस वाले भैया की बीवी होने के कारण मेरी आंटी लगती थी।


मैंने किसी तरह अपने ऊपर काबू पाया। मैं जैसे ही कुछ बोलने जा रहा था कि वो सामने से बोल पड़ी- आप कमलेश हो ना?

मैंने हां में अपना सर हिलाया।

आंटी बोली- मुझे माफ कर दीजिए, दरवाजा खोलने में थोड़ी देर हो गयी … क्योंकि अभी अभी मैं नहा कर सीधे बाथरूम से आ रही हूँ।


मैंने पूछा- आंटी ने मुझे क्यों बुलाया था?

तो आंटी बोली- आज मेरी ननद का जन्मदिन है … और शाम में एक छोटी सी उत्सव भी है।

मैंने बोला- इसमें मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?

तो आंटी मुस्कुराती हुई बोली- तुम अन्दर भी आओगे या सारी बातें दरवाजे पर ही करोगे।


मैं उसके साथ साथ घर के अन्दर आ गया। मुझे लगा कि घर में मेरे और उसके सिवा और कोई नहीं था।

मैंने पूछा- घर में कोई नहीं है क्या?

उसने बताया- हां मेरे सास ससुर कुछ सामान लाने के लिए बाजार गए हैं और मेरी ननद स्कूल गयी हैं। मेरे पति तो हमेशा की तरह आज भी लखनऊ टूर पर गए हैं।

मेरे मुँह से निकल गया- आंटी, आपको अकेले में डर नहीं लगता?


वो मेरी तरफ एकटक लगातार देखे जा रही थी। मैंने मन ही मन सोचा कि मैंने कुछ गलत तो नहीं बोल दिया ना।

फिर वो बोली- क्या बोला तुमने?

मैंने बात को टालते हुए कहा कि कुछ नहीं … कुछ नहीं।

लेकिन वो फिर से एक बार बोली- क्या बोला था … फिर से बोलो न?


मैंने अपनी बात फिर से दोहराई- आंटी आपको अकेले में डर नहीं लगता क्या?

वो बोली- तुमने मुझे आंटी बोला?

मैं बोला- हां। … आप ही बताओ मैं आपको क्या बोलूं?

तो उसने बोला कि मतलब इस रिश्ते से तुम मेरे देवर हुए।


इतना सुनने के बाद मैं थोड़ा शरारती अंदाज़ में बोला- आप इतनी जवान दिखती हो … मेरी उम्र की ही हो, अब मैं आपको आंटी तो बुला नहीं सकता … तो आप ही बताइए कि मैं आपको क्या बोलूं … आप जो बोलेंगी, मैं आपको वही बुलाऊंगा।


वो हंस दी और चाय बनाने के अन्दर जाते हुए बोली- मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूँ … और हां तुम मुझे आंटी बुलाओगे, तो मैं तुमको देवर जी बुलाऊं क्या?

मैंने बोला- आप मुझे कमलेश बुलाइए।

आंटी बोली- तुम भी मुझे दीपिका बुलाओ।

मैंने बोला- आप रिश्ते में मुझसे बड़ी हैं … तो मैं आपको दीपिका कैसे बुला सकता हूँ।

वो हंसने लगी।


मैंने फिर शरारती अंदाज़ में बोला- मेरे पास एक तरकीब है, जिससे दोनों की समस्या हल हो सकती है।

तो आंटी बोली- जल्दी बताओ यार … मुझे घर में बहुत काम हैं।

मैं बोला- जब हम दोनों घर में अकेले रहेंगे, जैसे अभी हैं … तो आप मुझे कमलेश और मैं आपको दीपिका बुलाऊंगा … और जब कोई हम दोनों के साथ में हो, तो मैं आपको आंटी और आप मुझे देवर जी बुला लेना … ठीक है ना!

उसने आंख मारते हुए कहा- तुम तो बहुत स्मार्ट हो … लो चाय पियो। फिर तुम घर सजा देना, मैं घर का काम समेट लूंगी।


हम दोनों चाय पीते हुए अपने अपने काम में लग गए।


वो रसोई में चली गयी और मैं घर को सजाने में लग गया।


कुछ देर वो दरवाजे के पास खड़े होकर मुझे देख रही थी। शायद उसको नहीं पता था कि मैं भी उसको ऊपर से छिप कर देख रहा हूँ।


फिर अचानक से आंटी बोली- कमलेश बहुत गर्मी है यार … थोड़ा कूलर ऑन करो ना।

मैं बोला- अभी नहीं आंटी जी … सब सामान उड़ जाएगा।

वो फटाक से बोली कि ओ मास्टर … अभी क्या बोले तुम?

मैं बोला- सही तो बोल रहा हूँ।


वो बोली- अभी हम दोनों अकेले हैं न … तुम मुझे दीपिका बोलोगे।

मैं बोला- गलती हो गयी दीपिका जी।

आंटी बोली- सिर्फ दीपिका। और आप वाप नहीं, सिर्फ तुम कहोगे।

मैंने बोला- ठीक है दीपिका।

दीपिका शब्द सुनते ही वो मेरे पास आकर बोली- हां अब ठीक है।


यह कहते हुए दीपिका आंटी ने मेरे पैर पर हल्की सी चिमटी काटी और हंस कर रसोई में चली गयी।


फिर थोड़ी देर बाद अचानक से रसोई से आवाज आयी- कमलेश जल्दी इधर आओ।


मैं दौड़ कर गया, तो देखा कि वो रसोई के एक कोने में गिरी पड़ी थी।

मैंने पूछा- अरे दीपिका क्या हुआ?

उसने बताया कि यार एक मोटा चूहा मेरे ऊपर कूद गया … तो मैं भागी और दरवाजे से मेरे पैर में चोट लग गयी।

मैं बोला- अरे यार कितनी डरपोक हो … अब तो तुम ठीक हो न?

वो बोली- मुझसे उठा नहीं जा रहा है, प्लीज मेरी हेल्प करो न।


मैं आंटी को हाथ से पकड़ कर उठाने लगा।

वो कराहते हुए बोली- मैं उठ भी नहीं सकती … तो चलने की तो दूर की बात है।


मैं फिर आंटी को अपने कंधे के सहारे उठाने लगा। मैंने इस तरह आंटी को उठाया कि उसका बायां हाथ मेरे गले पर और मेरा बायां हाथ उसके दायें हाथ को पकड़े हुए था। मेरा दायां हाथ उसकी कमर पर था।


क्या मस्त पतली और गोरी कमर थी … यार मन तो किया कि एक बार कसके दबा दूँ, पर उस समय उसकी हालत पर मुझे दया भी आ रही थी।


इसी तरह कुछ कदम चलते ही वो फिर सोफ़े पर बैठ गयी और बोली- अब नहीं चला जा रहा है … और गर्मी भी बहुत लग रही है।


मैं बोला- आप अन्दर रूम में चलिए, मैं कूलर ऑन कर देता हूँ।

आंटी बोली- बहुत दर्द हो रहा है … अब तो थोड़ा भी नहीं चला जाता।

मैंने झट से बोला- तो आपको गोद में उठा लूं?


आंटी भी जैसे इसी बात का इन्तजार कर रही थी, वे झट से बोली- तुम मुझे उठा लोगे?

मैंने बोला- हां क्यों नहीं।

आंटी ने कहा- अगर उठा पाए, तो क्या तुम मुझे मेरे बेड तक ले जा सकोगे … और यदि तुमने मुझे उठा लिया, तो मैं शाम को तुम्हें एक गिफ्ट दूँगी … मगर यह बात तुम भईया को नहीं बताना।

मैंने बात का मर्म समझते हुए कहा- ठीक है … पर आप भी किसी को कुछ नहीं बताना।

आंटी मुस्कुरा कर बोली- मैं किसी को क्यों बताने जाऊंगी।


इतना सुनने के बाद मैंने उन्हें झट से अपनी गोद में कुछ इस तरह उठाया कि मेरा दायां हाथ उसके गोल गोल चूतड़ों के पास और दूसरा हाथ उसकी नर्म मुलायम पीठ के पास आ गया। मेरा मुँह उसके सीने के ठीक सामने लगा था। आंटी भी मुझे एकदम से चिपक गई।


जैसे जैसे मैं उसको लेकर रूम की ओर बढ़ता जा रहा था, वैसे वैसे मेरे हाथ कभी उसके चूतड़ों को दबाते, तो कभी उसकी पीठ को सहलाते। जब मैं अपने दोनों हाथों को कस देता, तो मेरा मुँह आंटी के सीने में दब जाता और आंटी भी मेरा सिर पकड़ कर अपने सीने में दबाने लगती।


आंटी मेरा सर अपने मम्मों में दबाते हुए ये कहती जा रही थी- तुम मुझे गिरा ना दो … इसलिए मैंने तुम्हारे सिर को पकड़ कर रखा है।

यह कहते हुए आंटी मेरे मुँह को अपने सीने पर कसे ब्लाउज़ और साड़ी के आँचल से कसके रगड़ देती थी।


मेरा तो बुरा हाल था। एक जवान खूबसूरत आंटी मेरी गोद में थी। मुझे समझते देर न लगी कि आंटी क्या चाह रही है। फिर भी मैं अपने मुँह से या अपनी तरफ से कैसे पहल करता।


मैंने रुक कर इंतज़ार किया कि आगे देखो ये और क्या क्या करती है।


मैंने उसको बेड पर लिटा दिया और कूलर ऑन कर दिया। कूलर ऑन करते ही उसने अपने साड़ी के पल्लू को निकाल दिया, जो कि वैसे भी ऊपर से पूरा नीचे आ चुका था। यानि ऊपर अब सिर्फ लाल रंग का ब्लाउज़ ही बचा था।


आंटी के गहरे गले के ब्लाउज के अन्दर से उसके दोनों रसीले आमों के बीच की दरार भी बिल्कुल मेरी आंखों के सामने खुली दिख रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि आंटी अपने आमों को मुझे दिखाना चाह रही हो। उसकी मदभरी आंखें इस बात का इशारा कर रही थीं कि आ जाओ राजा तुमको इन्हीं आमों का रस चूसना है।


मैं भी लगातार आंटी के उन रसीले आमों को देखता जा रहा था। वो भी छिपी निगाहों से मुझे देख रही थी कि मैं क्या देख रहा हूँ।


आंटी बोली- कमलेश क्या हुआ … मुझे उठा कर थक गए क्या … कुछ पियोगे?


मेरे मन में आया कि बोल दूँ हां आपके आमों का रस थोड़ा सा मिल जाता … तो मेरी थकान दूर हो जाती। लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा।

मैंने उल्टा उसी से पूछा- अब बताओ मेरा गिफ्ट कहां है? मैं आपको अपनी गोद में यहां तक ले आया हूँ।


आंटी हंस कर कहने लगी- शाम को आ जाना … मैं भरपूर इनाम दूँगी।


मेरी समझ में तो आ गया था कि आंटी मुझे क्या इनाम दे सकती है।

इसका खुलासा अगले भाग में करूंगा।

दीपिका आंटी के साथ सैक्स कहनी पार्ट 2


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